बसे हो आप हिमाद्रि तुंग श्रृंग पर, बनकर जीव-मात्र का कंठहार| कहाँ अन्वेषु,कहाँ पाऊँ आपको? बिन आपके बंद हर अनुभूति का द्वार| किसी ने अमलन बात कही है? …
Read moreजो मुरली की टेर सुनाए, सबके उर में प्रेम जगाए। गोपियों के चित्त चुराकर, कुंज-निकुंज में छुप जाए। जिसमें संसार विभोर है, वो कृष्ण है, माखनचोर है। जो …
Read moreभाद्रपद-बौछार मनोरम है, अवनि के खिले अंग-अंग| सभी सिम्तों में हर्ष व्याप्त है, जीव को मिले हैं नव तरंग| हे कृष्ण! प्रीत-गीत बजा दो, प्रभु! बंसी क…
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