तुम ही हो जगदम्बा भवानी, औ' तुम ही कहलाती राधा। हे! प्रकृति की अधिकारिणी, तुम्हारे बिन हर रस आधा। सात्विक प्रेम की तुम प्रकृति, औ' वृतियों क…
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