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देख, दिवाली आई है




सर्वत्र घनघोर है अंधेरा,

जल रहा है दीपक मेरा|

इस दीपक के ओज से

अमावस मात खाई है,

देख, दिवाली आई है|


गांव-गांव अरु नगर में,

प्रदीप्त है दीप हर डगर में|

इस दीप-शिखा की ज़द ने

तम की बिसात हिलाई है,

देख, दिवाली आई है|


दिया तले भले है तिमिर,

औ' सुलग रहा है समीर|

पर दिया अदम्य साहस 

से अपना पग जमाई है,

देख, दिवाली आई है|


इंतजार है इसे सहर का,

साध्य पाना है समर का|

लड़ना है दम-मात्र तक

स्वर्णिम रश्मि दिखाई है,

देख, दिवाली आई है|


विकट झंझा से लड़कर,

उजाला देना है जलकर|

इस रीत को पाकर दिया 

अपनी  सत्ता  मिटाई  है,

देख, दिवाली आई है|


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