चलता इस अब्र से पूछकर,
अंतस्तल की बात कहो|
कौन चला रहा है नित हमें?
किसकी यह थाती अहो?
वो संघर्षरत क्यों मौन है?
अनंत लोक में हम कौन हैं?
बहती इस सलिला से पूछो,
सतत प्रवाह का कारण जानो|
किसलिए बह रही है अनवरत?
इस लहर का मूल पहचानो|
कौन रखा इसको गौण है?
अनंत लोक में हम कौन हैं?
इस प्रवाहित उदधि से पूछो,
किसलिए है यह गंभीर लहर?
सहता जाता नित सर्दी, वर्षा,
चाहे प्रकृति ढाए कोई कहर|
कौन बहाता पगपग पवन है?
अनंत लोक में हम कौन हैं?
टिक-टिक करता वक्त से पूछो,
क्यों न ठहरता लेने को विराम?
शब के निविड़ पहर में भी,
न ले पाता जरा भी विश्राम|
कौन बनाया इसे डॉन है?
अनंत लोक में हम कौन हैं?
दिवा के तपता रूप से पूछो,
सहमा है क्यों इस सर्दी में?
वक्त का यह अनुसरण कर,
तपाता भू को क्यों गर्मी में?
किसने बनाया अणु-कण है?
अनंत लोक में हम कौन हैं?
पथ पर खड़ा बबूल से पूछो,
किसके लिए ये ले रखा प्रण?
नित उपेक्षित, पीड़ित होकर,
सहेज रहा निज विशाल तन|
हुजूम में क्यों एकाकीपन है?
अनंत लोक में हम कौन हैं?
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