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नभ को छू दिखाना है

 फर-फर सर-सर करते,

अनंत डगर में जाना है|

पता है उड़ते पतंग को,

अंत में टूट ही जाना है|

चाहत है इससे पहले;

नभ को छू दिखाना है|


नए आशा साथ में लेकर,

एक सुदृढ़ सपना बनाना है|

सम्भलते, पवन से लड़ते,

हर गर्दिश से टकराना है|

डगमगाते, हिचकोले लेते

नभ को छू दिखाना है|


पेड़ों के ऊपर लहराकर,

विजय-पताका फहराना है|

प्रकृति के पथ में सैरकर,

भू से अम्बर-पथ जाना है|

मानस में दृढ प्रण संजोकर

नभ को छू दिखाना है|


कभी इधर, कभी उधर,

हर दौरों में नित जूझना है|

उड़न-खटोले की भाँति,

ऊर्ध्वगति प्राप्त करना है|

लहराती हुई हर सिम्त में

नभ को छू दिखाना है|


बढ़ते-बढ़ते, सरसराते,

रब को पैगाम पहुँचाना है|

इस अनंत लोक को नापने,

सुदूर क्षितिज में विचरना है|

वृहत पथ पे दौड़-दौड़कर

नभ को छू दिखाना है|


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