एक भूल से,
भूल जाते हैं लोग
सारी ख़ूबियाँ।
नहीं रचते
हम नूतन भव
बग़ैर भूल।
ज्ञात है मुझे,
पेंसिल की ईज़ाद
भूल के लिए।
नहीं बनते,
यायावर धरा पे
जो होते पूर्ण।
किस कसौटी
से मापे अनंत को,
बताओ ज़रा?
एक भूल से,
भूल जाते हैं लोग
सारी ख़ूबियाँ।
नहीं रचते
हम नूतन भव
बग़ैर भूल।
ज्ञात है मुझे,
पेंसिल की ईज़ाद
भूल के लिए।
नहीं बनते,
यायावर धरा पे
जो होते पूर्ण।
किस कसौटी
से मापे अनंत को,
बताओ ज़रा?
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