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प्रभु! बंसी की धुन सुना दो

 भाद्रपद-बौछार मनोरम है,

अवनि के  खिले  अंग-अंग|

सभी सिम्तों में हर्ष व्याप्त है,

जीव को  मिले हैं नव तरंग|

हे कृष्ण! प्रीत-गीत बजा दो,

प्रभु! बंसी की धुन सुना दो|


बरस रही हैं बरखा झमझम,

नव रस से धरा है पल्लवित|

पंछी भी नीड़ से निकलकर,

गा रहे हैं इस सुषमा के गीत|

हे कृष्ण! आप साज मिला दो,

प्रभु! बंसी की धुन सुना दो|


बरखा की ये रिमझिम बूँदे,

छेड़ दी हैं अनुपम सरगम|

सोंधी-गंध-मदहोशी छाई,

प्यासी धरा पाई है मरहम|

हे कृष्ण! प्रेम-धारा बहा दो,

प्रभु! बंसी की धुन सुना दो|


नाच गा रहे हैं मोर, पपीहा,

ताल-तलैया लबालब हुआ|

धरा का कणकण पुलकित है,

शीतल नीर जो इन्हें छुआ|

हे कृष्ण! वो लीला दिखा दो,

प्रभु! बंसी की धुन सुना दो|


अम्बर से अमृत बरसकर,

दे रहे जीव को जीवनदान|

तन-मन सब प्रफुल्लित हैं,

कर रहे हैं सब प्रेम-गुणगान|

हे कृष्ण! आ माखन खा लो,

प्रभु! बंसी की धुन सुना दो|


हे नटनागर! हे ज्ञानेश्वर!

सुनिए हमारी करुण पुकार|

जग में सत्य, प्रेम-धारा की,

दीजियए सबको एक पतवार|

हे कृष्ण! ढाई शब्द सीखा दो,

प्रभु! बंसी की धुन सुना दो|


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