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हम मजदूर हैं

अंततः उससे पूछा मैंने,

आपको क्या बीमारी है?

बड़े अदब से वो बोला,

साहब! भूख  भारी  है।

बार-बार यह सताती  है,

नींद बगैर शब जाती है।

कहीं से दो टूक जो मिले

तब यह औ' जग जाती है।

हमारी मंज़िले अभी दूर हैं,

साहब! हम मजदूर हैं...


राह देखते होंगे घर पर

माँ, बीवी औ' नन्हे बच्चें

दाने-दाने को मोहताज हैं,

मिलते पग-पग पर गच्चे।

हमारे मालिक का रहम नहीं,

स्वेद बहाते, हमें सहम नहीं।

आज खाते, कल को गाते,

जल जाते काश ऐसी बही।

विधि भी हमपे मगरूर है,

साहब! हम मजदूर हैं....


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